तोड़ दूं अगर मैं रिश्ते की डोर, तो जोड़ पाओगे क्या ??
छोड़ दूं अगर मैं साथ तुम्हारा हाथ, मेरा फिर भी थामोगे क्या ??
खून के आंसूं रुलाती रहूं अगर मैं, इसके बावजूद भी मेरे आंसू पोछोगे क्या ??
किसी और को चाहने लगूं अगर मैं, तुम फिर भी मुझे ही चाहोगे क्या ??
ख़्वाबों में न दिखूं अगर मैं तुम्हें, तो नींद के कातिल बनोगे क्या ??
बेइलाज हो जाए अगर बीमारी मेरी, तुम दुआएं लेकर अंगारों पे चलोगे क्या ??
बड़े चुप – चुप से लगते हो, अब आंखों को जलाओगे क्या ??
अधमरी पड़ी हैं अगर बातें हमारी, तुम आशा की लॉ बुझा पाओगे क्या ??
ओढ़ लूं मैं अगर सफ़ेद चादर, मेरी कब्र सजा पाओगे क्या ??
तारा बन अगर टूट जाऊं मैं किसी और को, अपनी क़िस्मत में मांगोगे क्या ??