जिसे कहते हो तुम …….
जिसे कहते हो तुम हमारी बर्बादीवो मेरी खुशनसीबी की ज़रा सी दास्ता हैं।
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जिसे कहते हो तुम हमारी बर्बादीवो मेरी खुशनसीबी की ज़रा सी दास्ता हैं।
मिजाज इश्क़ के मेरे ज़रा हसास हैंतेरे गुरूर का बोझ उठा नहीं सकता ।
एक उम्र तमाम हुई उनके इंतज़ार मैंउसने आने का वादा किया हो ऐसा भी नहीं।
अब इश्क़ इतना नादां भी नहींकी हर दफा तुम्ही से हो।
की क्या बताएं तआरुफ़ अपनाकी खुद से ही अभी अंजान है हम।
कोई दर्द न था जब तक हमदर्द न थाहमदर्द क्या मिला की ज़ख्म कोई नया।
मुझे आबाद कर या मुझे फ़ना करे कोईउसकी यादो से मुझसे जुदा करे कोई Like4:02 pm
इजाज़त हो तो कुछ अर्ज़ करेंवो लूट कर भी हमें अमीर कर गया।
दूर जाने का उसे क्या गम होगापास होकर भी वो कौन सा खुश था।
अनजान बने हो तो गुज़र क्यों नहीं जातेजान ही गए हो तो ठहर जाओ ना ।