दिलो को तोड़ने मैं …..
ज़िन्दगी सच मैं अगर होती चार दिन कीदिलो को तोड़ने मैं इसे कोई न गवाता।
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ज़िन्दगी सच मैं अगर होती चार दिन कीदिलो को तोड़ने मैं इसे कोई न गवाता।
उलझा रहने दो मुझेयुहीं तुम्हारे दरमियानसुलझ गए हम अगर तोदूरियाँ दास्तां बुनेंगी।
अपना कहकर अपनापन दिखाकरप्यार जताकर वो कह गए खुश रहना………………..
वो वक़्त आने पर सब वादों से मुकर गया ये मेरा ज़र्फ़ था की मैं ख़ामोशी से बिखर गया………
ये दिल और इसकी खामोख़ा की खुशफ़हमिया की जब भी मिला उन्हें अपना समझा।
जिस घड़ी तुमसे मुलाकात होती हैवो घड़ी मेरी क़ायनात होती है।
हम तड़पड़े हैं तो कीमत है तुम्हारीजो सब्र आ जाये तो फिर बात ही क्या I
न कोई मुलाकात न किसी वादे का तकाज़ा तुमसेहम तो बस एक झूटी तस्सल्ली के तलबगार थे।
महोब्बत न सही मेरी खुशफहमी ही रहने दो की दिल में जीने की ख्वाहिश ज़रा सी और बाकी है I
कोई मुलाक़ात न किसी वादे का तकाज़ा तुमसेहम तो बस एक झूठी तस्सल्ली के तलबग़ार थे I