लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का

लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का | Mirza Ghalib

लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का

ज़ियारत-कदा हूँ दिल-आज़ुर्दगाँ का

हमा ना-उमीदी हमा बद-गुमानी

मैं दिल हूँ फ़रेब-ए-वफ़ा-ख़ुर्दगाँ का

शगुफ़्तन कमीं-गाह-ए-तक़रीब-जूई

तसव्वुर हूँ बे-मोजिब आज़ुर्दगाँ का

ग़रीब-ए-सितम-दीदा-ए-बाज़-गश्तन

सुख़न हूँ सुख़न बर लब-आवुर्दगाँ का

सरापा यक-आईना-दार-ए-शिकस्तन

इरादा हूँ यक-आलम-अफ़्सुर्दगाँ का

ब-सूरत तकल्लुफ़ ब-मअ’नी तअस्सुफ़

‘असद’ मैं तबस्सुम हूँ पज़मुर्दगाँ का

लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का | Mirza Ghalib

By Real Shayari

Real Shayari Ek Koshish hai Duniya ke tamaan shayar ko ek jagah laane ki.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *