खुद से जीतने की जिद है मुझे खुद को ही हराना है
मैं भीड़ नहीं हूँ दुनिया की, मेरे अंदर एक जमाना है
उसे लगता है कि उसकी चालाकियाँ
मुझे समझ नहीं आती,
मैं बड़ी खामोशी से देखता हूँ उसे
अपनी नजरों से गिरते हुए।
वो खुद पे इतना गुरूर करते हैं
तो इसमें हैरत की बात नहीं,
जिन्हें हम चाहते हैं
वो आम हो ही नहीं सकते।
आदतें बुरी नहीं, शौक ऊँचे हैं,
वर्ना किसी ख्वाब की इतनी औकात नहीं
कि हम देखे और पूरा ना हो।
खुद से जीतने की जिद है मुझे खुद को ही हराना है
मैं भीड़ नहीं हूँ दुनिया की, मेरे अंदर एक जमाना है