Allama Iqbal Shayari | गर्म-ए-फ़ुग़ाँ है जरस उठ कि गया क़ाफ़िला
गर्म-ए-फ़ुग़ाँ है जरस उठ कि गया क़ाफ़िला वाए वो रह-रौ कि है मुंतज़़िर-ए-राहिला तेरी तबीअत है और तेरा ज़माना है और तेरे मुआफ़िक़ नहीं ख़ानक़ही सिलसिला दिल हो ग़ुलाम-ए-ख़िरद या…
Asli Shayari | Sher | Shayar | Ghazal | Nazm
घर से दूर नौकरी शायरी |
गर्म-ए-फ़ुग़ाँ है जरस उठ कि गया क़ाफ़िला वाए वो रह-रौ कि है मुंतज़़िर-ए-राहिला तेरी तबीअत है और तेरा ज़माना है और तेरे मुआफ़िक़ नहीं ख़ानक़ही सिलसिला दिल हो ग़ुलाम-ए-ख़िरद या…