Month: October 2017

अनकही सी कुछ बातें , लम्हों में समां जाती हैं

अनकही सी कुछ बातें , लम्हों में समां जाती हैं यादों के समंदर में , अपना आशियाना बनाती है मीलों के फास्लो में , कुछ ठहराव वो लाती है ग़मो…

ज़रा तिरछी पड़ने लगी है किरन अब

ज़रा तिरछी पड़ने लगी है किरन अब ज़रा सर्दियाँ सब्ज़ पत्तों में उतरीं ज़रा पड़ रही हैं कहीं और ही अब जवाँ हुस्न की बुल्हवस वो निगाहें तसव्वुर वो माज़ी…