सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम

सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम | Mirza Ghalib

सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम

हैराँ किए हुए हैं दिल-ए-बे-क़रार के

आग़ोश-ए-गुल कुशूदा बरा-ए-विदा है

अंदलीब चल कि चले दिन बहार के

यूँ बाद-ए-ज़ब्त-ए-अश्क फिरूँ गिर्द यार के

पानी पिए किसू पे कोई जैसे वार के

बाद-अज़-विदा-ए-यार ब-ख़ूँ दर तपीदा हैं

नक़्श-ए-क़दम हैं हम कफ़-ए-पा-ए-निगार के

हम मश्क़-ए-फ़िक्र-ए-वस्ल-ओ-ग़म-ए-हिज्र से ‘असद’

लाएक़ नहीं रहे हैं ग़म-ए-रोज़गार के

सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम | Mirza Ghalib

By Real Shayari

Real Shayari Ek Koshish hai Duniya ke tamaan shayar ko ek jagah laane ki.

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