शीशे सा दिल एहसास की परछाई कहते हैं, आईना सिर्फ़ हमारी शक्ल नहीं दिखाता, बल्कि हमारे जज़्बात, हमारे हालात और हमारे टूटे हुए लम्हों का भी गवाह होता है। जब दिल खुश होता है, तो उसकी चमक किसी साफ़ शीशे की तरह होती है, और जब दर्द सहता है, तो दरारों से भरा आईना बन जाता है, जिसमें हर टुकड़ा बीते लम्हों की परछाई लिए होता है। कभी-कभी, ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है, जहाँ हम खुद को पहचान भी नहीं पाते। आईने में अक्स तो दिखता है, मगर वो हम होते ही नहीं।
आईना हमें सच्चाई दिखाने का हौसला रखता है, लेकिन क्या हम खुद को देखने की हिम्मत रखते हैं? इसी एहसास को बयां करती है ये शायरी…
शीशे सा दिल एहसास की परछाई
शायरी:
आईना हूँ मैं, मगर किरचियों में बँट गया,
हर ज़ख़्म से मेरा एक अक्स झलक गया।
जो कभी था सलामत, वो आज टूट चुका,
तेरी यादों का रंग भी अब धुंधला पड़ गया।
रातों की तन्हाइयों में खुद को टटोलता हूँ,
आईने में चेहरा वही, पर अक्स बदल गया।
ख़्वाबों की बस्ती उजड़ती रही हर रोज़,
तेरी मोहब्बत का शहर भी वीरान हो गया।
जिसे सच समझा, वो एक धोखा था शायद,
आईने की आँखों में हर राज़ खुल गया।
तेरी यादों की परछाई अब भी जिंदा है,
पर वो चेहरा जाने कहाँ खो गया?
एहसास की गहराई
ज़िंदगी में हर कोई कभी न कभी इस एहसास से गुज़रता है। हम अक्सर दूसरों को देखते हैं, पर खुद को देखना भूल जाते हैं। आईना सिर्फ़ एक वस्तु नहीं, बल्कि हमारी ज़िंदगी का वो हिस्सा है, जो हमें हमारी सच्चाई से रूबरू कराता है। जब हम उसमें झाँकते हैं, तो हमें वो दिखता है, जो शायद हम सबसे छिपा रहे होते हैं।
अगर आप भी कभी किसी आईने के सामने रुके हैं और उसमें अपने अक्स से सवाल किए हैं, तो इस शायरी से खुद को ज़रूर जोड़ पाएँगे। क्योंकि आईना झूठ नहीं बोलता, बस हम ही उसकी सच्चाई को समझने में देर कर देते हैं।
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