बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है | मिर्ज़ा ग़ालिब
बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है
ग़ुलाम-ए-साक़ी-ए-कौसर हूँ मुझ को ग़म क्या है
तुम्हारी तर्ज़-ओ-रविश जानते हैं हम क्या है
रक़ीब पर है अगर लुत्फ़ तो सितम क्या है
सुख़न में ख़ामा-ए-ग़ालिब की आतिश-अफ़्शानी
यक़ीं है हम को भी लेकिन अब उस में दम क्या है
कटे तो शब कहें काटे तो साँप कहलावे
कोई बताओ कि वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म क्या है
लिखा करे कोई अहकाम-ए-ताला-ए-मौलूद
किसे ख़बर है कि वाँ जुम्बिश-ए-क़लम क्या है
न हश्र-ओ-नश्र का क़ाएल न केश ओ मिल्लत का
ख़ुदा के वास्ते ऐसे की फिर क़सम क्या है
वो दाद-ओ-दीद गराँ-माया शर्त है हमदम
वगर्ना मेहर-ए-सुलेमान-ओ-जाम-ए-जम क्या है