फिर इस अंदाज़ से बहार आई

फिर इस अंदाज़ से बहार आई | मिर्ज़ा ग़ालिब

फिर इस अंदाज़ से बहार आई

कि हुए मेहर-ओ-मह तमाशाई

देखो साकिनान-ए-ख़ित्ता-ए-ख़ाक

इस को कहते हैं आलम-आराई

कि ज़मीं हो गई है सर-ता-सर

रू-कश-ए-सतह-ए-चर्ख़-ए-मीनाई

सब्ज़ा को जब कहीं जगह मिली

बन गया रू-ए-आब पर काई

सब्ज़ा गुल के देखने के लिए

चश्म-ए-नर्गिस को दी है बीनाई

है हवा में शराब की तासीर

बादा-नोशी है बादा-पैमाई

क्यूँ दुनिया को हो ख़ुशी ‘ग़ालिब’

शाह-ए-दीं-दार ने शिफ़ा पाई

फिर इस अंदाज़ से बहार आई | मिर्ज़ा ग़ालिब

By Real Shayari

Real Shayari Ek Koshish hai Duniya ke tamaan shayar ko ek jagah laane ki.

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