दिल लगा कर लग गया उन को भी तन्हा बैठना

दिल लगा कर लग गया उन को भी तन्हा बैठना | मिर्ज़ा ग़ालिब

दिल लगा कर लग गया उन को भी तन्हा बैठना

बारे अपनी बेकसी की हम ने पाई दाद याँ

 

हैं ज़वाल-आमादा अज्ज़ा आफ़रीनश के तमाम

महर-ए-गर्दूं है चराग़-ए-रहगुज़ार-ए-बाद याँ

 

है तरह्हुम-आफ़रीं आराइश-ए-बे-दाद याँ

अश्क-ए-चश्म-ए-दाम है हर दाना-ए-सय्याद याँ

 

है गुदाज़-ए-मोम अंदाज़-ए-चकीदन-हा-ए-ख़ूँ

नीश-ए-ज़ंबूर-ए-असल है नश्तर-ए-फ़स्साद या

 

ना-गवारा है हमें एहसान-ए-साहब-दाैलताँ

है ज़र-ए-गुल भी नज़र में जौहर-ए-फ़ौलाद याँ

 

जुम्बिश-ए-दिल से हुए हैं उक़्दा-हा-ए-कार वा

कम-तरीं मज़दूर-ए-संगीं-दस्त है फ़रहाद याँ

 

क़तरा-हा-ए-ख़ून-ए-बिस्मिल ज़ेब-ए-दामाँ हैं ‘असद’

है तमाशा करदनी गुल-चीनी-ए-जल्लाद याँ

दिल लगा कर लग गया उन को भी तन्हा बैठना | मिर्ज़ा ग़ालिब

By Real Shayari

Real Shayari Ek Koshish hai Duniya ke tamaan shayar ko ek jagah laane ki.

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