जीवित छवियों के अलावा, चित्रों को भी शायरी का विषय बनाया गया है। चित्र छवियों को प्रतिष्ठित बनाते हैं, लेकिन ये छवियाँ स्थिर होती हैं और बोलने या काम करने के लिए नहीं होतीं हैं। चुपचाप होने पर भी वे सिर्फ खुद के प्यार के लिए संरक्षित रहती हैं क्योंकि वे यादें जागृत करती हैं और एक पूर्व के पल के लिए एक मूल्यवान गिफ्ट के रूप में दिल में रखी जाती हैं।
1. “तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत, हम जहां में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं.” – इमाम बख्श नसीख
2. “तेरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन, जबां में आँख नहीं, आँख में जबां नहीं.” – जिगर मुरादाबादी
3. “आपने तस्वीर भेजी, मैंने देखी गौर से, हर अदा अच्छी खामोशी की अदा अच्छी नहीं।” – जलील मनिकपुरी
4. “ज़िन्दगी भर के लिए रूठ के जाने वाले, मैं अभी तक तिरी तस्वीर लिए बैठा हूँ।” – क़ैसरुल जाफरी
5. “चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फिराक, तस्वीर-ए-यार को है मेरी गुफ्तगू पसंद।” – दाग़ देहलवी
6. “जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर, वो तस्वीर बातें बनाने लगी।” – आदिल मंसूरी
7. “मुझको अक्सर उदास करती है, एक तस्वीर मुस्कुराती हुई।” – विकास शर्मा राज़
8. “भेज दी तस्वीर अपनी, उनको ये लिख कर ‘शकील’, आप की मर्ज़ी है चाहे जिस नज़र से देखिए।” – शकील बदायूं
9. “कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए, उस की तस्वीर हटा दी जाए।” – मोहम्मद अलवी
10. “मैंने तो यूँही राख में फेरी थीं उंगलियां, देखा जो गौर से तिरी तस्वीर बन गई।” – सलीम बेताब
11. “जिस से ये तबियत बड़ी मुश्किल से लगी थी, देखा तो वो तस्वीर हर दिल से लगी थी।” – अहमद फ़राज
12. “मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने काग़ज, साथ तेरी मेरी तस्वीर निकल आई है।” – साबिर दत्त
13. “दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार, जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली।” – लाला मौजी राम मौजी
14. “मैंने भी देखने की हद कर दी, वो भी तस्वीर से निकल आया।” – शेहपर रसूल
15. “कह रही है ये तिरी तस्वीर भी, मैं किसी से बोलने वाली नहीं।” – नूह नर्वी
16. “लगता है कई रातों का जागा था मुसव्विर, तस्वीर की आँखों से थकन झाँक रही है।” – अज्ञात
17. “आता था जिस को देख के तस्वीर का ख़याल, अब तो वो किल ही मेरी दीवार में नहीं।” – ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
18. “सूरत-ए-वस्ल निकलती किसी तदबीर के साथ, मेरी तस्वीर ही खींचती तिरी तस्वीर के साथ।” – अज्ञात
19. “तिरी तस्वीर तो वादे के दिन खींचने के काबिल है, कि शर्माई हुई आँखें हैं घबराई हुई दिल है।” – नज़ीर अल्लाहाबादी