चला है सिलसिला कैसा ये रातों को मनाने का
तुम्हें हक़ दे दिया किसने दियों के दिल दुखाने का
इरादा छोड़िये अपनी हदों से दूर जाने का
ज़माना है ज़माने की निगाहों में न आने का
कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो
मियाँ दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का
निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का
ये मैं ही था बचा के ख़ुद को ले आया किनारे तक
समन्दर ने बहुत मौक़ा दिया था डूब जाने का
- वसीम बरेलवी