ऐ खुदा तूने सब कुछ हमें दिया मगर “दिल” क्यों दिया.
ना दिल होता ना प्यार…
ना ही रंजिशे होती, ना ही साजिशें
ना ही कोइ ख्वाहिश होती और ना ही कोई नफ़रत की दीवार.
ना हिंदू होता, ना होता कोई मुसलमान
ना “इनटोलरेंस” की बातें होती,
ना किसी के स्पीच सुन के होता कोई परेशान,
ना परेशानियां होती, ना ही कोई कल की सोचा करता
ना पैसों का दबदबा होता
ना ही तकलीफों में कोई मारा करता.
के काश दिल ना होता और लोग दिमाग़ से काम लेते
ना ये दिल होता, ना ही कोई उसमे बसा करते
क्यों फिर बनाया ये दिल, ऐ खुदा आज ये बता दे
धड़कने के अलावा, ये सोचा ना करें…
ऐसा कुछ इसे सिखा दे
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