अगर ये ज़िद है कि मुझसे दुआ सलाम न हो,
तो ऐसी राह से गुज़रो जो राह-ए-आम न हो।
सुना तो है कि मोहब्बत पे लोग मरते हैं,
ख़ुदा करे कि मोहब्बत तुम्हारा नाम न हो।
बहार-ए-आरिज़-ए-गुल्गूँ तुझे ख़ुदा की क़सम,
वो सुबह मेरे लिए भी कि जिसकी शाम न हो।
मेरे सुकूत को नफ़रत से देखने वाले,
यही सुकूत कहीं बाइस-ए-कलाम न हो।
इलाही ख़ैर कि उन का सलाम आया है,
यही सलाम कहीं आख़िरी सलाम न हो।
जमील उन से तआरूफ़ तो हो गया लेकिन,
अब उनके बाद किसी से दुआ सलाम न हो।