अकबर इलाहाबादी शायरी का सफर

अकबर इलाहाबादी शायरी का सफर इस ब्लॉग में हम प्रसिद्ध शायर अकबर इलाहाबादी की शायरी के अद्वितीय सफर को जानेंगे। उनकी रचनाओं में हास्य, व्यंग्य, और समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार शामिल हैं। अकबर इलाहाबादी की शायरी न केवल उनके समय के समाज का प्रतिबिंब है, बल्कि आज के दौर में भी उनकी कविताएँ प्रासंगिक हैं। आइए, उनकी बेहतरीन शायरी के माध्यम से उनके जीवन और विचारों को करीब से जानें।

अकबर इलाहाबादी शायरी का सफर

 

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,

वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।

 

इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद,

अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता।

 

दुनिया में हूँ, दुनिया का तलबगार नहीं हूँ,

बाजार से गुजरा हूँ, खरीदार नहीं हूँ।

 

हया से सर झुका लेना, अदा से मुस्कुरा देना,

हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना।

 

जो कहा मैंने कि प्यार आता है मुझको तुम पर,

हंस के कहने लगा और आपको आता क्या है।

 

मज़हबी बहस मैंने की ही नहीं,

फ़ालतू अक्ल मुझमें थी ही नहीं।

 

पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा,

लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए।

 

रहता है इबादत में हमें मौत का ख़टका,

हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं, कर ले न ख़ुदा याद।

 

अकबर दबे नहीं किसी सुलतान की फौज से,

लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से।

 

हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है,

डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है।

 

मैं भी ग्रेजुएट हूँ, तुम भी ग्रेजुएट,

इल्मी मबाहिसे हों ज़रा पास आ के लेट।

 

हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं,

कि जिनको पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं।

 

B.A भी पास हों, मिले बीबी भी दिल-पसंद,

मेहनत की है वो बात, ये क़िस्मत की बात है।

 

लिपट भी जा ना रुक ‘अकबर’, ग़ज़ब की ब्यूटी है,

नहीं नहीं पे ना जा ये हया की ड्यूटी है।

 

ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए,

मैं लेटा तो उठ के खड़े हो गए।

 

जो वक़्त-ए-ख़तना में चीखा तो नाई ने कहा हंस कर,

मुसल्मानी में ताक़त खून ही बहने से आती है।

 

हक़ीक़ी और माज़ी शायरी में फ़र्क़ ये पाया,

कि वो जामे से बाहर है, ये पायजामे से बाहर है।

 

इस कदर था खटमलों का चारपाई में हुजूम,

वस्ल का दिल से मेरे अरमान रुख़सत हो गया।

 

धमका के बोसे लूंगा रुख-ए-रश्क-ए-माह का,

चंदा वसूल होता है साहब दबाव से।

 

कोट और पैंट पहन के मिस्टर बन गया,

जब कोई तकरीर की जलसे में लीडर बन गया।

 

अकबर इलाहाबादी की शायरी का सफर हमें यह सिखाता है कि कैसे एक शायर अपने समाज का सटीक चित्रण कर सकता है और हास्य-व्यंग्य के माध्यम से गहरी बातों को सरलता से समझा सकता है। उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें सोचने पर मजबूर करती हैं। उनकी शायरी के जरिये हमने समाज, प्रेम, और इंसानी रिश्तों की बारीकियों को समझा। उनकी शब्दों की जादूगरी हमें हँसाती भी है और सोचने पर मजबूर भी करती है।

आइए, हम अकबर इलाहाबादी की शायरी के सफर को अपने दिलों में संजोए रखें और उनकी रचनाओं से प्रेरणा लेते रहें।

By Real Shayari

Real Shayari Ek Koshish hai Duniya ke tamaan shayar ko ek jagah laane ki.

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