आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
दाम हर मौज में है हलका-ए-सदकामे-नहंग
देखें क्या गुज़रे है कतरे पे गुहर होने तक
आशिकी सबर तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं ख़ूने-जिगर होने तक
हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएंगे हम तुमको ख़बर होने तक
परतवे-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूं एक इनायत की नज़र होने तक
यक-नज़र बेश नहीं फुरसते-हसती गाफ़िल
गरमी-ए-बज़म है इक रकसे-शरर होने तक
ग़मे-हसती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मरग इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक